शाम जब ढलने लगी
देखते ही देखते सूरज डूबने लगा ।
आर्जूओ के समंदर में
धीरे धीरे समाने लगा ।।
रौशनी के ख्वाबों में था
हकीक़त से अंजाना ।
होश जब आया मुझे
दिल बैठ सा ज़ाने लगा ।।
आँखें मूंदी सोचा वहम हैं
तस्सल्ली दी फिजूल ।
ऐसा नहीं हो सकता
दिल को मनाने लगा ।।
वहम जो होता तो
छट जाता आँखें मूंदते ही ।
हो न हो ये सच हैं
एहसास एक सताने लगा ।।
सन्नाटें गहराते गयें
तनहा था मैं चाँद सा ।
गुजरतें हुए हर झोंके से पूछा
क्या सूरज का कोई ठिकाना लगा ।।
बड़ी लंबी कटी रात दर्दनाक
छत पर गढ़ें हर एक लम्हें के निशान ।
फिर आखिर सवेरा हुआ
सूरज झरोंखों से मुस्कुराने लगा ।।
पूछा जब कहा थे रातभर
तो कहा यहीं था कही न गया ।
अन्धेरें के कारण तुम्ही न देख पाएं होंगे
दलिले मेरी ही झूट्लाने लगा ।।
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