Sunday, October 26, 2014


छत 


सन्नाटों में सिसकियाँ भी गूँजती हैं 
भीड़ में चीख़ छिप जाती हैं 
कहते हैं जाड़ो में आवाज़ दूर तक जाती हैं ।। 

सुलगते अरमानों की बस राख़ हैं 
हसरतों की रेत हाथों से फ़िसल जाती हैं 
कहते हैं जाड़ो में आवाज़ दूर तक जाती हैं ।। 

हौसलें का पेड़ भी खोकला हो जाए 
वक़्त की जब उसे दीमक लग जाती हैं 
कहते हैं जाड़ो में आवाज़ दूर तक जाती हैं ।। 

दुनियाभर के नज़ारों से छत मेरी दिलचस्प हैं 
खोयी तस्वीर भी उभर आती हैं 
कहते हैं जाड़ो में आवाज़ दूर तक जाती हैं ।। 

हथेलियों में ठिठुरता लुत्फ़ हैं कही 
कोई माँ अपनी चादर बच्चे को ओढ़ाती हैं 
कहते हैं जाड़ो में आवाज़ दूर तक जाती हैं ।। 

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