Wednesday, February 27, 2019

Zaahir

ज़ाहिर 

दुनिया को नहीं मालूम
एक मायूस गली में मैं रहता हूँ |
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

नाक़ामयाबी के दरिया में डूबता
तिनका मैं खोजता रहता हूँ |
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

तुम समझोगे, अपनाओगे जो मैं हूँ
खुशफैमियों में अपनीही रहता हूँ |
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

तंग हो रही मेरी चादर
पैर समेटता रहता हूँ|
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

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Tuesday, February 26, 2019


फ़िराक़ 

रास्ते किये मुक्कमल हमनें
मंज़िलों की फ़िराक में |
सफ़र हम करते रह गए
मिल गए तस्सवूर ख़ाक में ||


किस्मत हैं इल्म था हमें
लकीरें थी हाथ में |
मुक्कदर के बिखरे पुर्ज़े
हम ढूँढ़ते रह गए राख में ||

उम्मीद बनी कजरारी
ठहरी हैं अभी आँख में |
न फेर हमसें मूह ज़िन्दगी
हम अभी भी हैं ताक में ||
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Prem


|| प्रेम ||

प्रेम की क्या परिभाषा करें
प्रेम तो बस स्वभाव हैं |
सेतु हैं आत्मा से परमात्मा तक
जहा अहम् का अभाव हैं ||


शिल्पकार नहीं बनाता मूर्ति
करता उसे अनावृत्त हैं |
व्यर्थ पत्थर दूर किया
इश्वर तो भीतर जागृत हैं ||

प्रेम की ही अभिव्यक्ति हैं
बुद्ध, राम, माधव
मोर रिझाएँ नृत्य से
या करें शिव तांडव ||

समझ प्रेम अवरोध भक्ति का
हमने उसे ज़हर खिलाया हैं |
जीवित हैं बन ज़हरीला वो
प्रेम नहीं मिट पाया हैं ||
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Mausam


|| मौसम ||


खुश्क हुआ मौसम
दिल मेरा सूख गया |
न जाने क्यों सावन
यू मुझसे रूठ गया ||


पतझड़ का था इशारा
सहमी हर डाल हर पात |
न जाने क्यों साथ बहारों का
यू मुझसे छूट गया ||

हैं खुशनुमा सा एक फिर भी
एहसास हवाओं में |
न जाने क्यों ये झोंका
कह मुझसे झूट गया ||
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Waham

वहम

ख्वाबों का वज़न
हक़ीक़त से कम क्यों हैं |
इस शहर में हर दूसरी
आँख नम क्यों हैं ||

नहीं आसान ये सफ़र
ज़िन्दगी एक जद्दोजहद
बेबुनियाद और बेतुकीसी
नसीहतें बाहम क्यों हैं ||

पेट जब हो खाली ख़ाली
कैसे न देखें दूसरे की थाली
एक निवाला भी न बांटे
ज़माना इतना बेरहम क्यों है ||

हौंसले से क्या नहीं मिलता
सिकंदर तो मैं ही हू
कल होगा आज से बेहतर
छटता नहीं ये वहम क्यों है ||

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