फ़िराक़
रास्ते किये मुक्कमल हमनें
मंज़िलों की फ़िराक में |
सफ़र हम करते रह गए
मिल गए तस्सवूर ख़ाक में ||
किस्मत हैं इल्म था हमें
लकीरें थी हाथ में |
मुक्कदर के बिखरे पुर्ज़े
हम ढूँढ़ते रह गए राख में ||
उम्मीद बनी कजरारी
ठहरी हैं अभी आँख में |
न फेर हमसें मूह ज़िन्दगी
हम अभी भी हैं ताक में ||
---०---
No comments:
Post a Comment