Wednesday, February 27, 2019

Zaahir

ज़ाहिर 

दुनिया को नहीं मालूम
एक मायूस गली में मैं रहता हूँ |
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

नाक़ामयाबी के दरिया में डूबता
तिनका मैं खोजता रहता हूँ |
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

तुम समझोगे, अपनाओगे जो मैं हूँ
खुशफैमियों में अपनीही रहता हूँ |
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

तंग हो रही मेरी चादर
पैर समेटता रहता हूँ|
कई दिनों से कहना चाहता था
चलो आज मैं ये कहता हूँ ||

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